करवाचौथ :- सुहागिन महिलाओं द्वारा किया जाने वाला पर्व करवा चौथ इस बार बीस अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस पर्व में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है व उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी यह पर्व करने की मान्यता है। इस दिन महिलाएं दिन भर बिना अन्न खाए निर्जला रहती है व शाम में चांद निकलने के बाद ही अन्न जल को ग्रहण करती है। जिनके पति अपनी पत्नियों के साथ रहते है वे तो खुद से अन्न जल ग्रहण करवा देते है परंतु जिन महिलाओं के पति इस दिन कही किसी कारणवश बाहर रहते है या नोकरी पेशा के कारण इस दिन नहीं आ पाते, महिलाएं चांद को देख कर ही अपना व्रत तोड़ती है।
जाने क्या है मान्यता ?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि को मनाया जाता है, यही कारण है के इसका नाम करवा चौथ है। इस बार इसका शुभ मुहूर्त बीस अक्टूबर की सुबह 6:46 बजे से इक्कीस अक्टूबर की सुबह 4:16 तक रहेगा। शुभ मुहूर्त शुरू होने के दो घंटे पहले तक अन्न ग्रहण किया जा सकता है फिर उसके बाद चांद निकलने के बाद ही कुछ खाया जा सकता है। हिंदू मान्यताओं में उपवास रखने का भी खासा महत्व होता है जिसके कई लाभ भी होते है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार माता करवा वो पहली स्त्री थी जिन्होंने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था, और द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी के कहने पर द्रौपदी ने भी इस व्रत को रखा था उसके बाद से महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और समृद्धि के लिए यह व्रत रखने लगी।
इस व्रत को करने पर स्त्रियों को कुछ बातों का ध्यान भी रखना चाहिए। जैसे के जिन दिन करवा चौथ का व्रत रखा जाता है भूल कर भी स्त्रियों को दिन में नहीं सोना चाहिए। दूसरा के अपने सुहाग के सामग्री से किसी को भी दान नहीं करना चाहिए। व्रत पूरा होने पर अपने स्त्रियों को अपनी सास को पूजा की सामग्री जरूर देनी चाहिए।
एक मान्यता यह भी है के स्त्रियां इस पर्व के माध्यम से भगवान चंद्र देव से आशीर्वाद मांगती है के उन्हें अपने पति से किसी भी सूरत में अलग न होना पर। माता सीता ने भी इस व्रत को रखा था। जब वह अशोक वाटिका में रावण की कैद में थी तब वो भूखी प्यासी कई दिनों तक थी, तभी सभी देवतागण माता सीता के समक्ष आए और उनसे अनुरोध किया के वह अन्न जल का ग्रहण करे। तब सीता माता ने चंद्र देव के सामने इस व्रत को खोला और तभी से इस पर्व में चंद्र देव की पूजा होनी शुरू हुई।
आइए जानते है इस पर्व के कुछ विधि के बारे में:_
इस दिन व्रती दिन भर बिना कुछ खाए पिए रहती है, परंतु अगर कोई महिला बीमार है अथवा गर्भवती है तो वे फलाहार कर सकती है।
इसके बाद चांद उगने के पश्चात भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को ध्यानमग्न होकर चन्द्रमा की पूजा की जाती है। चांद को पहले छलनी से देख कर उसके बाद पति को देखने की प्रथा इस पर्व में है। फिर पति को तिलक लगाकर उनकी पूजा की जाती है और ईश्वर से कामना की जाती है के उनके पति की आयु लंबी हो और दाम्पत्य जीवन में सुख समृद्धि आए।
सोलह श्रृंगार कर के माता करवा की पूजा करना सुहागिनों के लिए महत्वपूर्ण पर्व में आता है। यह पर्व रखने से दाम्पत्य जीवन में खुशियां आती है और सारी मनोकामनाएं पूरी होती है ऐसी मान्यता है।
ऊपर दी गई खबर के माध्यम से खबर भास्कर का उद्देश्य करवा चौथ पर सिर्फ जानकारी देना है और इसकी विशेष पूजा विधि के लिए किसी जानकार व्यक्ति से ही संपर्क कर सकते है।