Khatushyam baba: आज पूरे भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम से खाटूश्याम बाबा का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। खरुश्याम मंदिर में भक्तों की भीड़ लगने लगी है और लोग इसे बहुत ही श्रद्धा से मनाते है।
आज हम बात करते है खाटूश्याम बाबा यानी के बर्बरीक जी के बारे में।
Khatushyam baba: कौन है बाबा खाटूश्याम और क्या है इनके इस नाम का रहस्य।
दोस्तो बाबा खाटूश्याम का नाम कृष्ण भगवान के अनेकों नाम में से एक नाम श्याम के ऊपर पड़ा है। बात द्वापर युग की है जब महाभारत युद्ध होने को थी। उस समय बहुत योद्धा ने या तो पांडवो के पक्ष में युद्ध करने की सोची या कौरवों का साथ दिया। लेकिन बाबा खाटूश्याम यानी के बर्बरीक ने यह निश्चय किया की जो भी दल कमजोर पड़ेगा वह उसका साथ देंगे।
यह देखते हुए कृष्ण भगवान बड़ी ही चिंता में पर गए क्योंकि बर्बरीक बहुत ही निपुण योद्धा थे और वो पल भर में ही युद्ध को खत्म करने की क्षमता रखते थे। इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण वेश लेकर बर्बरीक से उनका शीश मांग लिया। साथ में कृष्ण जी ने उनको यह आशीर्वाद दिया कि वो कटे सिर से भी पूरे महाभारत युद्ध को देख सके।
और महाभारत युद्ध के पश्चात जब पांडव की जीत हुई उसके बाद सारे लोग बर्बरीक के पास उनसे मिलने गए। भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक के बलिदान से इतने प्रसन्न हुए के उन्होंने अपना नाम उनको दिया और तभी से बर्बरीक को बाबा खाटूश्याम के नाम से जाना जाने लगा।
Khatyshyam baba: क्यों कहते है उनको हारे का सहारा, खाटूश्याम बाबा।
दोस्तो जब बर्बरीक जी को उनका नाम खाटूश्याम मिला उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने कहा की कलयुग के भगवान के नाम से भी जाने जाओगे। और जो भी मक्त तुम्हारे दरबार में आएंगे और हारे मन से जो भी मांगेंगे उनकी इच्छा की पूर्ति होगी और तभी से मान्यता भी है के जो भी मक्त उनके दरबार में हारे मन से जा कर विनती करते है उनकी बात जरूर पूरी होती है।
Khatushyam baba: कहा पर है खाटूश्याम का मंदिर।
दोस्तो वैसे तो बाबा खाटूश्याम जी का मंदिर हर जगह पर है, लेकिन प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में है। सीकर शहर से लगभग 40 किमी दूर स्थित यह मंदिर बहुत मायनों में खास है और आज के दिन भक्तों की काफी भीड़ होती है यहां पर।
जो भक्त ट्रेन से सफर कर के यहां जाते है उन्हें सबसे पहले जयपुर रेलवे स्टेशन जाना होता है और फिर वह से बस पकड़ कर सीधे खाटूश्याम मंदिर जाते है।
Khatushyam baba:खाटूश्याम बाबा किसकी संतान थे?
खाटूश्याम बाबा यानी के बर्बरीक जी घटोत्कच के पुत्र और भीम व हिडिंबा के पुत्र थे। उन्होंने अपनी सिद्धि से भोलेनाथ को प्रसन्न कर लिया था। बदले में उन्हें तीन अभेद बाण मिले थे, जिसका कई कथाओं में वर्णन भी मिलता है जिसके अनुसार एक बार की बात है, श्री कृष्ण बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए कहा के पीपल के पेड़ की सारी पत्तियों में छेद कर दे ऐसा बाण चलाए और उस पेड़ की एक पत्ती को अपने पैरों से छिपा लिया।
उसके बाद जैसे ही बर्बरीक ने अपना बाण चलाया, उनके तीर ने एक एक करके सारी पत्तियों में छेद कर दिया और अंतिम में वह बाण श्री कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया। यह देख भगवान श्री कृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और उनकी प्रतिभा को मान गए।
मान्यता है की उस द्वापर युग वाला पीपल का पेड़ आज भी मंदिर प्रांगण में मौजूद है।
दोस्तो एक अन्य मान्यता के अनुसार भक्त यहां पर अपनी अर्जी लगाते है। और जो भक्त सच्चे मन से बाबा के दरबार में अपनी अर्जी लगाते है उनकी मुराद जरूर पूरी होती है।
अतः भक्तगणों से अनुरोध है के हारे का सहारा खाटूश्याम बाबा का जन्मोत्सव आज बारी ही धूम धाम से मनाए और अपनी अर्जी जरूर लगाए। जय बाबा खाटूश्याम जी।।।